क्रिकेट में “DLS” का पूरा नाम “डकवर्थ-लुईस-स्टर्न” (Duckworth-Lewis-Stern) है। यह एक विधि है जिसका उपयोग बारिश या अन्य कारणों से मैच में बाधा पड़ने पर टीमों के लक्ष्यों का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि खेल का निष्पक्ष और सटीक परिणाम निकाला जा सके।
डकवर्थ-लुईस-स्टर्न (DLS) एक गणितीय तरीका है, जिसका उपयोग क्रिकेट में बारिश या किसी अन्य रुकावट के कारण प्रभावित मैचों में लक्ष्य को दोबारा सेट करने के लिए किया जाता है। इसे 1990 के दशक में अंग्रेज़ी सांख्यिकीविदों फ्रैंक डकवर्थ और टोनी लुईस ने विकसित किया था, और बाद में प्रोफेसर स्टीवन स्टर्न द्वारा इसमें सुधार किया गया। इसलिए अब इसे डकवर्थ-लुईस-स्टर्न विधि कहा जाता है।
DLS कैसे काम करता है?
DLS का आधार रिसोर्सेज यानी उपलब्ध संसाधन (बचे हुए ओवर और विकेट) होते हैं, जो यह तय करते हैं कि एक टीम कितने रन बना सकती है। जब किसी मैच में रुकावट आती है, तो DLS प्रणाली इन संसाधनों को देखते हुए लक्ष्य को दोबारा गणना करती है।
DLS के मुख्य भाग
- रिसोर्सेज (संसाधन): ओवर और विकेट को मिलाकर टीम की शक्ति (या रिसोर्स) तय की जाती है।
- रिसोर्स टेबल: DLS मॉडल में एक तालिका होती है, जो मैच के किसी भी समय पर बचे हुए रिसोर्सेज का प्रतिशत बताती है।
- पार स्कोर: रुकावट के बाद DLS एक “पार स्कोर” निर्धारित करता है, जो यह बताता है कि दूसरी टीम को बराबरी में आने के लिए कितने रन चाहिए।
एक उदाहरण
मान लीजिए, टीम A ने 50 ओवर में 250 रन बनाए हैं, और टीम B की पारी के दौरान बारिश हो जाती है। DLS प्रणाली यह देखती है कि टीम B के कितने ओवर और विकेट बचे हैं और उसी अनुसार लक्ष्य को घटा या बढ़ा देती है।
DLS की आवश्यकता क्यों है?
क्रिकेट में बारिश या अन्य रुकावट के बाद खेल को एक नए तरीके से शुरू नहीं किया जा सकता। DLS एक संतुलित तरीका है, जो खेल को दोनों टीमों के लिए समान रूप से चुनौतीपूर्ण बनाने का प्रयास करता है।
DLS की सीमाएं
हालांकि यह प्रणाली काफी प्रभावी है, पर इसकी जटिलता को लेकर आलोचना होती है, और कई बार यह लग सकता है कि यह एक टीम को दूसरे पर थोड़ी बढ़त दे देता है। फिर भी, यह अंतरराष्ट्रीय और घरेलू क्रिकेट में सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत प्रणाली है।